Wednesday, March 12, 2008

हां,मैं नारी हूं




नारी, तुम नारी हो
सब कहते रहे
मैं लडती रही
जूझती रही
सब कुछ बदला
पर मुझे लेकर
मानसिकता नहीं
अब मैं थक चुकीं हूं
आक्षेपों से
अवहेलनाऒं से
हां! मैं नारी हूं
सिर्फ नारी


27 comments:

Ashish Maharishi said...

मुझे आजतक यह समझ में नहीं आया कि नारी को क्‍यों हमेशा कमजोर माना गया है। क्‍या वो वाकई कमजोर होती हैं या फिर एक मानसिकता है। मुझे नहीं पता है लेकिन फिर भी लगता है कि कहीं न कहीं हम नारी की आजादी से डरते हैं,क्‍यों, यह मुझे भी नहीं पता

गरिमा said...

हां! मैं नारी हूं
सिर्फ नारी
सिर्फ़ यही कारण है कि
"मै नारी सिर्फ़ नारी है"
वो थक जाती है
जुझ नही पाती
मन्जिल तक कहाँ जाती है
रास्त मे ही रह जाती है
सच ही कहा
नारी हूँ .. सिर्फ़ नारी

Anita kumar said...

आप और हम सब बाकी की नारियां भी भाग्यशाली हैं कि हम नारी हैं।

Sanjeet Tripathi said...

क्यों है यह थकन,
स्वीकारते हुए जैसे समय को
प्रतिकार की बजाय
समर्पण का भाव क्यों
हालात के सामने
समय को जीना
सिर्फ़ जीना
इसमें क्या
समय से जूझकर
जीना ही तो जीना है न!

Anonymous said...

क्यो तुम लड़ती रहीं
क्यो तुम जूझती रहीं
क्यो तुम चाहती हो
बदलना मानसिकता औरो की
क्या फरक हैं फिर तुममे और उनमे
मत जुझो , मत लडो
मत और समय अपना बरबाद करो
मत बदलो किसी की मानसिकता
हो सके तो बदलो अपनी मानसिकता
जियो उस स्वतंत्रता को जो
इश्वरिये देन , जो नहीं कोई और तुमेह देगा
नारी हो नारी ही बन कर रहो
प्यासी हो तो पानी पीयो
भूखी हो तो खाना खाओ
पर मत लडो , मत जुझो
और नारी होने के एहसास से सम्पूर्णता पाओ
अधूरी तुम नहीं हो , क्योंकी तुम जिनसे लड़ती हो
उनके अस्तिव की तुम ही तो जननी हो
तुम ख़ुद आक्षेप और अवेहलना करती हो
अपनी इच्छाओं की ,
कब तक अपनी कमियों का दोष
दूसरो पर डालोगी
समय जो बीत जाता है लौट कर नहीं आता है

वनमानुष said...

पुरुष के अन्दर भी नारीत्व है, जिसके अभाव में पुरुष पशु बन जाता है.
नारी एक शरीर नहीं नारी एक गुण है.मुझे कोई ये बताये कि नारी थक कैसे सकती है?
और ये कौन सी नारी है जो थक चुकी है? ये थकान है या परिस्थितियों के समक्ष आत्मसमर्पण?

Gyan Dutt Pandey said...

जूझने में थकान लाजमी है। पर यह जूझना कई स्तरों पर होता है। व्यक्ति (नारी या पुरुष) अकेला होने पर थकता है। भाग्य से थकता है। कभी कभी भय से थकता है - वह भय जिसका कारण स्पष्ट नहीं होता।

नारी होने का अर्थ पूरी फ्रीडम के बिना जूझना है। उसमें अतिरिक्त थकान लाजमी है। आपकी भावना समझ में आती है।

अजय कुमार झा said...

nari kee ek alag paribhasha samjhane ke liye dhanyavaad. sach nari sirf nari hai.

डॉ .अनुराग said...

thake nahi.....yahi to aapki shakti hai.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नारी !
न...अरि यानी शत्रु नहीं है ....मित्र है वह.
वह आरी भी नहीं है ,इसलिए नारी है !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया .

अमल से ही समाधान के दरवाजे खुलते हैं...
और आपके ब्लॉग के शीर्ष पर अंकित है ...हर पल खुद की तलाश जारी है !
बस इस तलाश से बेहतर कोई राह नहीं हो सकती .

आपके ही ज़ज़्बे के ख्याल का एक शेर देखिए
-----------------------------------
ज़माने में उसने बड़ी बात कर ली
खुद से ही जिसने मुलाक़ात कर ली .
---------------------------

Asha Joglekar said...

नारी कमजोर होती नही यह कह कह कर उसे बना दिया जाता है ।
रखो विश्वास अपने बुध्दि-बल पर
जगाओ आत्मविश्वास को अपने अंदर
जगमगाने दो चरित की ज्योति उज्वल
कर सकोगी पार मुश्किल का समंदर

SahityaShilpi said...

मानसिकता में बदलाव ज़रूर हुआ है पर निस्संदेह यह अभी भी समानता के स्तर से बहुत दूर है. थकान कभी कभी हो सकती है पर यह रुकने की वज़ह नहीं बन सकती.

- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

रवीन्द्र प्रभात said...

मेरे समझ से नारी शक्ति का पर्याय है , कमजोर कहकर उसका अपमान करना अच्छी बात नही !

Krishan lal "krishan" said...

रचना वो सार्थक होती है जो स्वय कम कहे पर दूसरों को सोचने और कहने पर मजबूर कर दे। आपकी च्न्द पक्तियां कितनो विवश कर गयी इतना कुछ कहने के लिये । बधाई
आपके ब्लाग पर पहली बार आया अच्छा लगा

art said...

naari ki shakti pradaan karne ki kshamta uski snij shakti se bhi badi hai

Unknown said...

होली की पूरे परिवार को बधाईयाँ - शुभ कामनाएं - सादर - मनीष

कुश said...

नारी बहुत महान है.. नारी शक्ति का रूप है.. आवश्यकता है अपनी शक्ति पहचानने की.. यदि नारी ही नारी को कमज़ोर समझे तो ये कैसे संभव होगा..

व्याकुल ... said...

अनुराधा जी ,
आपका ब्लोग देखा ..काफी ख़ुशी हुई ..आपका होंसला देखकर ..आप एक अच्छी रचनाकार होने के साथ-साथ एक संवेदनशील मगर दृद-निश्चयी हैं...यह बात आपक ब्लोग में प्रकाशित रचना नन्ही बड़ी हो गयी से पता चलता है ...आपKE अपने परिवार के बीच होने वाले वार्तालाप में भी काफी कुछ सिखने को मिला...

एक बात और..मुझे यह समझ नहीं आया की आपने मुझे किस प्रयास के लिए शुभकामनायें दी थी ...क्योंकि WASE तो हमें हमेशा ही शुभकामनाओं की जरुरत महसूस होती है ..मगर जब शुभकामनायें एक निश्चित प्रयास के लिए हो तब उसका असर अधिक होता है..ऐसा मेरा विश्वास है ..
हाँ एक बात में आपसे और कहना चाहूँगा की यह ठीक है की आप नारी की दशाओं पर लिखती है..उसकी मजबूरियों के बारे में लिखती है .मगर मुझे पता है ..आप उनमे से नहीं ..आप का मज़बूरी नाम की वस्तु से कोई संबंध नहीं..क्योंकि आपके विचार काफी मजबूत है..


रविंदर टमकोरिया 'व्याकुल '

व्याकुल ... said...

अनुराधा जी ,
आपका ब्लोग देखा ..काफी ख़ुशी हुई ..आपका होंसला देखकर ..आप एक अच्छी रचनाकार होने के साथ-साथ एक संवेदनशील मगर दृद-निश्चयी हैं...यह बात आपक ब्लोग में प्रकाशित रचना नन्ही बड़ी हो गयी से पता चलता है ...आपKE अपने परिवार के बीच होने वाले वार्तालाप में भी काफी कुछ सिखने को मिला...

एक बात और..मुझे यह समझ नहीं आया की आपने मुझे किस प्रयास के लिए शुभकामनायें दी थी ...क्योंकि WASE तो हमें हमेशा ही शुभकामनाओं की जरुरत महसूस होती है ..मगर जब शुभकामनायें एक निश्चित प्रयास के लिए हो तब उसका असर अधिक होता है..ऐसा मेरा विश्वास है ..
हाँ एक बात में आपसे और कहना चाहूँगा की यह ठीक है की आप नारी की दशाओं पर लिखती है..उसकी मजबूरियों के बारे में लिखती है .मगर मुझे पता है ..आप उनमे से नहीं ..आप का मज़बूरी नाम की वस्तु से कोई संबंध नहीं..क्योंकि आपके विचार काफी मजबूत है..


रविंदर टमकोरिया 'व्याकुल '

व्याकुल ... said...

अनुराधा जी ,
आपका ब्लोग देखा ..काफी ख़ुशी हुई ..आपका होंसला देखकर ..आप एक अच्छी रचनाकार होने के साथ-साथ एक संवेदनशील मगर दृद-निश्चयी हैं...यह बात आपक ब्लोग में प्रकाशित रचना नन्ही बड़ी हो गयी से पता चलता है ...आपKE अपने परिवार के बीच होने वाले वार्तालाप में भी काफी कुछ सिखने को मिला...

एक बात और..मुझे यह समझ नहीं आया की आपने मुझे किस प्रयास के लिए शुभकामनायें दी थी ...क्योंकि WESE तो हमें हमेशा ही शुभकामनाओं की जरुरत महसूस होती है ..मगर जब शुभकामनायें एक निश्चित प्रयास के लिए हो तब उसका असर अधिक होता है..ऐसा मेरा विश्वास है ..
हाँ एक बात में आपसे और कहना चाहूँगा की यह ठीक है की आप नारी की दशाओं पर लिखती है..उसकी मजबूरियों के बारे में लिखती है .मगर मुझे पता है ..आप उनमे से नहीं ..आप का मज़बूरी नाम की वस्तु से कोई संबंध नहीं..क्योंकि आपके विचार काफी मजबूत है..


रविंदर टमकोरिया 'व्याकुल '

Neeraj Badhwar said...

जायज़!

Neeraj Badhwar said...

जायज़!

mehek said...

bahut khubsurat bhav se saji kavita hai, satya bhara hai har pankti mein,jaise ki har nari ke mann ki baat kahi ho,bahut bahut sundar.

राजकुमार जैन 'राजन' said...

आपने नारी मन की भावनाओं को बहुत सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है।

समयचक्र said...

पहले की अपेक्षा नारी अब अबला नही सबला सशक्त है

vijay kumar sappatti said...

aapki ye nazm padkar main bahut gahre soch mein pad gaya ..

kya hamne naari ko wastav mein azaadi di hai ..

bahut accha likhti hai aap

bahut badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/