Thursday, November 1, 2007

क्या ये उचित है?

राज्यसभा में विपक्ष के नेता जसवतं सिंह जैसे वरिष्ठ राजनीतिज्ञ द्वारा अपने पैतृक गाँव जसोल में अफीम की मनुहार करना क्या उचित है? एक तरफ आप एक प्रबुद्ध नागरिक होते हैं ,दूसरे सक्रिय राजनीति में होने पर समाज के प्रति उनकी जवाबदेही बनती है। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिये प्रतिबद्ध होने की ना कि उसकी जगह रीतिरिवाज की दुहाई देकर दूषित परिपाटी का निर्वाह करने की। ये क्या उचित है?

मारवाड क्षेत्र की परम्परा है कि जन्म,परण या मरण जैसे मौकों पर ,शरीक होने वाले लोगों से अफीम की मनुहार करीं जाती है। ये किसी जमाने में काफी लोकप्रिय और सम्मानीय परम्परा मानी जाती थी। कहा जाता था कि यदि किसी शत्रु ने अफीम की मनुहार स्वीकार कर ली तो दुश्मनी उसी क्षण से समाप्त हो जाती थी। मगर ये तो बीते दिनों की बात हुई।

अफीम मनुहार के कई दुष्परिणाम भी सामने आये। आयोजनों में मनुहार करीं गई अफीम को चखते-चखते कब लोग इसके गुलाम बन जाते हैं -इसका अहसास तब होता है जब आदी व्यक्ति अपने घरबार ,जमीन आदि को बेच कर भी अपनी जरुरतों को पुरा करता है। भीलवाडा क्षेत्र में नशा मुक्ति केन्द्र में आने वालों में बडी संख्या ग्रामीण स्तर से आने वाले अफीम के आदी लोगों की होती है।

कानूनन अफीम रखना और उसकी मनुहार करना अवैद्य है।एनडीपीसी एक्ट के तहत इसमें सजा का भी प्रावधान है।लेकिन जब हमारे नेता ही कानून की धज्जियाँ उडाते है तो और किसी का क्या कहना।

6 comments:

संजय बेंगाणी said...

जोधपुर के शाही खानदान ने अब अफिम की मनुहार बन्द कर दी है. रीवाजो में समयानुसार बदलाव अनिवार्य है. इसे स्वीकारा जाना चाहिए.

Ashish Maharishi said...

इस देश का खुदा ही मालिक है

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

बहुत वाज़िब सवाल उठाया है आपने. लेकिन यह सब तब तक चलता रहेगा, जब तक कि हमारे देश में आम और खास का अंतर मिट नहीं जाता. सारे नियम, कानून, कायदे आम लोगों के लिए हैं. खास तो सब चीज़ों से ऊपर हैं. जस्वंत सिंह तो खासमखास हैं और फिर इधर राज्य भाजपा में जो घमासान मचा हुआ है उसके कारण तो वे और भी अधिक खास हो गए हैं. हो भले ही अफीम के विरुद्ध कोई प्रावधान, किस माई (राज्य में वसुन्धरा राज है) के लाल में हिम्मत है जो उनकी तरफ नज़र् उठाकर भी देखे ले?
पिछले दिनों राज्य के कई मंत्रियों-विधायकों पर जब बिजली-पानी की भारी रकम बकाया निकाली गई तो उनके जो मासूम जवाब थे वे भी देखने लायक थे.आप हम होते तो कभी के इन सुविधाओं से महरूम कर दिए गए होते.

Sanjeet Tripathi said...

सही सवाल!!

देखकर अच्छा लगा कि अब आप सभी क्षेत्रों में कलम चला रही हैं, जारी रखें!

आलोक कुमार said...

बहुत कठिन प्रहार किया है आपने...नेताओ को तो सोचना ही चाहिए इन बदलावो के बारे मे...

Udan Tashtari said...

अजब प्रथा है नशेड़ी बनाने की. इस पर तो रोक लगना ही चाहिये.