सपने में देखी सुनीता जी की पार्टी
समीर जी के स्वागत में सुनीता जी ने जो पार्टी रखी थी उसमें क्या-क्या होगा उसकी कल्पना करते-करते ना जाने कब आँख लग गई। भला हो सपनों का, जो काम सहज ना होता हो वो सपनों में चुटकी बजाते ही सम्पन्न हो जाता है। तो सुनिए आप भी हमारी स्वप्नदर्शी पार्टी का आँखों देखा हाल-धीरे-धीरे रंग पार्टी का जमने लगा है,
कोई गलबहियां डाले तो,
कोई चहक-चहक कर मिला,
पर जो भी मिला खूब गर्म जोशी से मिला।
सुरुर जमने लगा और सुगबुगाहट शुरु हो गयी।
कहीं से एक आवाज़ उठी और भीड में खो गई,
थोडी ही देर में उसी प्रश्न को हमने लपक लिया,
"समीर जी इतनी सारी टिप्पणीयाँ करने और पढने का समय कैसे निकालते हैं?
समीर जी ने अपना प्रिय काला चश्मा उतारा,
कनखियों से हमें निहारा
और बोले नादान "सीसीपी" का जमाना है
हम ठहरे लिपट अज्ञानी,
गावदी की तरह आँखें झपकाई और दोहराया "सीसीपी"
समीर भाई मुस्कुराये, धीरे से बुदबुदाये
"कट,कापी और पेस्ट"।
हम बलिहारी थे
और अपनी अक्ल पर पानी-पानी थे।
काश पहले जान जाते,
समीर जी की जगह लोगों की ज़ुबां पर अपना नाम पाते,
पार्टी उनके सम्मान में नहीं ज़नाब हमारे लिये हो रही होती,
तभी ज्ञानदत्त जी पर नजर पडी-
हम तपाक से मिले पूछा -
इतनी विविधता कहां से लाते है?
रोज़ ब्लाग पोस्ट करने का टाइम कहां से पाते हैं?
वो थोडा सा सकपकाये फिर,
उन्होनें ऊपर से नीचे तक निहारा
और तपाक से बोले- "सरकारी मुलाज़िम हूँ इतना तो जानते हैं"।
काश धरती फट जाती और हम उसमें समा जाते,
अपनी कम अक्ली पर लोगों के तानों से तो बच जाते।
भीड में सारथी जी हर किसी को
ब्लागरी करने और पढने के लिये
"मोटिवेट" करते नजर आये।
जिस हिसाब से लोग प्रभावित थे
उस हिसाब से ब्लागर्स की संख्या
दस हजार की जगह
पंद्रह हजार का आंकडा छूयेगी
हम प्रभावित थे उनके डेडिकेशन से।
दूर नजर पडी संजीत जी पर
ज़नाब मजमा जमाये थे-
गोपियों की भीड में
कान्हा से जमे थे-
मुँह में पान भरे थे,
किसी बात पर बोले
"अपुन साला तो ऐसइच है"।
काकेश जी गुरु मंत्र दे रहे थे,
संजय गुलाटी जी हस्तरेखा व ज्योतिष का ज्ञान सबमें बाँट रहें थे।
एक ओर शैलेष जी,राजीव जी व गिरीराज जी
हिन्दयुग्म की "पब्लिसिटी" में लगे थे
दूसरी ओर अनिता जी सौम्य सी,
ऑर्कुट को ज्वाइन करने के फायदे गिना रही थी।
भई हम उनसे सौ प्रतिशत सहमत हैं,
"ना ये बात होती
ना वो बात होती"
वाला आलम हम भी जानते हैं,मानते हैं।
दुहाई हो ऑर्कुट की जिसने आप जैसे मित्रों से मिलाया।
कोई गलबहियां डाले तो,
कोई चहक-चहक कर मिला,
पर जो भी मिला खूब गर्म जोशी से मिला।
सुरुर जमने लगा और सुगबुगाहट शुरु हो गयी।
कहीं से एक आवाज़ उठी और भीड में खो गई,
थोडी ही देर में उसी प्रश्न को हमने लपक लिया,
"समीर जी इतनी सारी टिप्पणीयाँ करने और पढने का समय कैसे निकालते हैं?
समीर जी ने अपना प्रिय काला चश्मा उतारा,
कनखियों से हमें निहारा
और बोले नादान "सीसीपी" का जमाना है
हम ठहरे लिपट अज्ञानी,
गावदी की तरह आँखें झपकाई और दोहराया "सीसीपी"
समीर भाई मुस्कुराये, धीरे से बुदबुदाये
"कट,कापी और पेस्ट"।
हम बलिहारी थे
और अपनी अक्ल पर पानी-पानी थे।
काश पहले जान जाते,
समीर जी की जगह लोगों की ज़ुबां पर अपना नाम पाते,
पार्टी उनके सम्मान में नहीं ज़नाब हमारे लिये हो रही होती,
तभी ज्ञानदत्त जी पर नजर पडी-
हम तपाक से मिले पूछा -
इतनी विविधता कहां से लाते है?
रोज़ ब्लाग पोस्ट करने का टाइम कहां से पाते हैं?
वो थोडा सा सकपकाये फिर,
उन्होनें ऊपर से नीचे तक निहारा
और तपाक से बोले- "सरकारी मुलाज़िम हूँ इतना तो जानते हैं"।
काश धरती फट जाती और हम उसमें समा जाते,
अपनी कम अक्ली पर लोगों के तानों से तो बच जाते।
भीड में सारथी जी हर किसी को
ब्लागरी करने और पढने के लिये
"मोटिवेट" करते नजर आये।
जिस हिसाब से लोग प्रभावित थे
उस हिसाब से ब्लागर्स की संख्या
दस हजार की जगह
पंद्रह हजार का आंकडा छूयेगी
हम प्रभावित थे उनके डेडिकेशन से।
दूर नजर पडी संजीत जी पर
ज़नाब मजमा जमाये थे-
गोपियों की भीड में
कान्हा से जमे थे-
मुँह में पान भरे थे,
किसी बात पर बोले
"अपुन साला तो ऐसइच है"।
काकेश जी गुरु मंत्र दे रहे थे,
संजय गुलाटी जी हस्तरेखा व ज्योतिष का ज्ञान सबमें बाँट रहें थे।
एक ओर शैलेष जी,राजीव जी व गिरीराज जी
हिन्दयुग्म की "पब्लिसिटी" में लगे थे
दूसरी ओर अनिता जी सौम्य सी,
ऑर्कुट को ज्वाइन करने के फायदे गिना रही थी।
भई हम उनसे सौ प्रतिशत सहमत हैं,
"ना ये बात होती
ना वो बात होती"
वाला आलम हम भी जानते हैं,मानते हैं।
दुहाई हो ऑर्कुट की जिसने आप जैसे मित्रों से मिलाया।
सुनीता जी उस घडी को कोस रहीं थी जब उन्हें पार्टी देने का आइडिया आया। बाकी सब मेलमिलाप में व्यस्त थे और वो बेचारी ग्यारह साल के कवि अक्षत के साथ एक पाँव से चक्करघिन्नी बनी हुई थी। काश ये एहसास पहले होता तो समीर जी से औपचारिक मुलाकात ही कर लेती, थोडे बहुत गुरु-मंत्र पा लेतीं।
तौबा मत करिये जनाब आज बस इतना ही थोडे दिनो के बाद जब आप सब हमें झेल पाने का धैर्य फ़िर से पा लेंगे, तब पुनः उपस्थित होंगे और इस स्वप्नदर्शी पार्टी का शेष हाल सुनायेंगें।
(यह रचना सिर्फ़ मौज-मस्ती के मूड में लिखी गई है, आशा है इसे पाठक या अन्य कोई भी, अन्यथा नही लेंगे।)